*वो नयी सुबह कभी तो आएगी...*
लेखक:- दिनेश कुमार कीर
_*वो नयी सुबह कभी तो आएगी...*_
_(लेख मे स्थान व नाम काल्पनिक है व क्षेत्र के गरीबों व मजदूरों की रसद सामग्री से मदद जरूर करें)_
_पहला काल्पनिक दृश्य..._
*काली रात के 12 बजे अचानक हुई... आवाज से मोना की नींद खुल गई... उसने मन के अंदेशे को दूर करने के लिए पति को जगाया... अजी सुनो... कुछ आवाज हुई अभी... अरे यार सो जाओ तुम्हें कुछ वहम हुआ होगा... कहकर पलटकर घोड़े बेचकर खर्राटे भरने लगा...*
_काल्पनिक दूसरा दृश्य..._
*मध्यरात मे अभी चंद मिनट ही निकले थे की फिर से आवाज ने दोनों को उठा दिया... मैंने कहा ना... कोई है... मोना धीमे से बोली कही बच्चे पानी के लिए तो नही उठे... पति बोला... नही मे पानी का जग रखकर आई हूं और उन्हें बताकर भी... पति उठा और अलमारी से टाँर्च निकालकर पास से एक डंडा उठाकर कमरे से बाहर निकल पडा पीछे-पीछे मोना भी सहमती हुए... चलने लगी देखा तो कुछ आहट रसोईघर से आ रही थी... पती कुछ डरा भी हुआ था...*
_काल्पनिक तीसरा दृश्य...
_ *रसोईघर की लाइट जलाकर बोला-को... कौन है... कौन है... कौन है... देखा तो एक व्यक्ति हट्टा-कट्टा मास्क पहने रसोईघर मे खडा था... ऐ... आगे नही बढना वरना मार दूंगा... रसोईघर का चाकू उठाते वो चिल्लाते हुए बोला... कौन हो... कौन हो तुम... मोना दहाड़ते हुए बोली- आप इससे इंटरव्यू क्या ले रहे हो... अपने पुलिस वाले दोस्त को फोन कीजिए... तबतक मे इसे देखती हूं... अज्ञात व्यक्ति बोला नही... नही... बाबूजी... नही... नही... दीदी... पुलिस नही... देखिए मैने चाकू फेंक दिया... कहते उसने चाकू फैंक दिया...*
_काल्पनिक चौथा दृश्य..._
*चोरी कर रहे हो और कहते हो कुछ नही किया... मोना बोली... चोर... नही दीदी... मे चोर नही हूं... मे तो एक मजदूर हूं... गरीब मजदूर... तीन दिनों से सरकार ने कोरोना वायरस की वजह से सब बंद कर दिया... काम धंधा बंद कर दिया... जो पैसा बचा था उससे अनाज लेने गया... मगर... लूट रहे है आटा-चावल-चीनी... दोगुने दाम पर मिल रहा है... आखिर बचे पैसों मे जो अनाज मिला लाकर घर पर दे दिया... मगर सब खत्म होने पर... बच्चे भूखे रो रहे थे मे और मेरी पत्नी तो आँसु पीकर संतोष कर रहे थे मगर बच्चों को... क्या करता बाबूजी... मे कोई चोर नही हूं... वरना आपके रसोईघर मे अनाज नही ढूंढता आपकी अलमारी या कमरों मे कीमती सामान ढूंढता... कहकर रो पडा...*
_काल्पनिक पांचवां दृश्य..._
*पती ने डंडा दूसरी ओर फैंकते कहा-... समझता हूं भाई... सब समझता हूं हालात और मजबूरी को... कुछ जमाखोरों और कुछ लोगों ने राशन दुकानों मे कीमतें बढाकर लोगों को लूटना शुरू किया हुआ है... खैर... घबराओ मत... मोना... भाई को जरुरी अनाज सब्जी और कुछ रुपये दे दो... मोना ने एक थैला निकाला कुछ स्टोरेज कुछ फ्रिज मे से रसद समान देते हुए कहा- घबराओ मत भैया बुरा वक्त है जल्द ही गुजर जाएगा... हर काली रात की सुबह जरुर होती है...*
_काल्पनिक छठवां दृश्य..._
*वो समान लिए रोते हुए... दरवाजे से बाहर निकल गया... वही दोनों पति-पत्नी भीगी पलकों को छुपाते चुप-चाप वापस कमरे में बिस्तर पर आकर सो गए... दोस्तों जाने कितनी बार लिखते समय मे स्वयं निशब्द-सा हो जाता हूं... दोस्तों आपके दोस्त _दिनेश कुमार कीर_ की ऐसे वक्त मे एक अपील है सिर्फ और सिर्फ इंसानियत याद रखिए... ये बुरा वक्त भी जल्द ही गुजर जाएगा... आखिर इस काली रात को दूर करने... वो नयी सुबह कभी तो आएगी... वो नयी सुबह कभी तो आएगी...*
सभी से अपील की जाती है कि कोरोना महामारी की वजह से आपातकाल की स्थिति में गरीब व मजदूर की रसद सामग्री से मदद करे ......
_*वो नयी सुबह कभी तो आएगी...*_
_(लेख मे स्थान व नाम काल्पनिक है व क्षेत्र के गरीबों व मजदूरों की रसद सामग्री से मदद जरूर करें)_
_पहला काल्पनिक दृश्य..._
*काली रात के 12 बजे अचानक हुई... आवाज से मोना की नींद खुल गई... उसने मन के अंदेशे को दूर करने के लिए पति को जगाया... अजी सुनो... कुछ आवाज हुई अभी... अरे यार सो जाओ तुम्हें कुछ वहम हुआ होगा... कहकर पलटकर घोड़े बेचकर खर्राटे भरने लगा...*
_काल्पनिक दूसरा दृश्य..._
*मध्यरात मे अभी चंद मिनट ही निकले थे की फिर से आवाज ने दोनों को उठा दिया... मैंने कहा ना... कोई है... मोना धीमे से बोली कही बच्चे पानी के लिए तो नही उठे... पति बोला... नही मे पानी का जग रखकर आई हूं और उन्हें बताकर भी... पति उठा और अलमारी से टाँर्च निकालकर पास से एक डंडा उठाकर कमरे से बाहर निकल पडा पीछे-पीछे मोना भी सहमती हुए... चलने लगी देखा तो कुछ आहट रसोईघर से आ रही थी... पती कुछ डरा भी हुआ था...*
_काल्पनिक तीसरा दृश्य...
_ *रसोईघर की लाइट जलाकर बोला-को... कौन है... कौन है... कौन है... देखा तो एक व्यक्ति हट्टा-कट्टा मास्क पहने रसोईघर मे खडा था... ऐ... आगे नही बढना वरना मार दूंगा... रसोईघर का चाकू उठाते वो चिल्लाते हुए बोला... कौन हो... कौन हो तुम... मोना दहाड़ते हुए बोली- आप इससे इंटरव्यू क्या ले रहे हो... अपने पुलिस वाले दोस्त को फोन कीजिए... तबतक मे इसे देखती हूं... अज्ञात व्यक्ति बोला नही... नही... बाबूजी... नही... नही... दीदी... पुलिस नही... देखिए मैने चाकू फेंक दिया... कहते उसने चाकू फैंक दिया...*
_काल्पनिक चौथा दृश्य..._
*चोरी कर रहे हो और कहते हो कुछ नही किया... मोना बोली... चोर... नही दीदी... मे चोर नही हूं... मे तो एक मजदूर हूं... गरीब मजदूर... तीन दिनों से सरकार ने कोरोना वायरस की वजह से सब बंद कर दिया... काम धंधा बंद कर दिया... जो पैसा बचा था उससे अनाज लेने गया... मगर... लूट रहे है आटा-चावल-चीनी... दोगुने दाम पर मिल रहा है... आखिर बचे पैसों मे जो अनाज मिला लाकर घर पर दे दिया... मगर सब खत्म होने पर... बच्चे भूखे रो रहे थे मे और मेरी पत्नी तो आँसु पीकर संतोष कर रहे थे मगर बच्चों को... क्या करता बाबूजी... मे कोई चोर नही हूं... वरना आपके रसोईघर मे अनाज नही ढूंढता आपकी अलमारी या कमरों मे कीमती सामान ढूंढता... कहकर रो पडा...*
_काल्पनिक पांचवां दृश्य..._
*पती ने डंडा दूसरी ओर फैंकते कहा-... समझता हूं भाई... सब समझता हूं हालात और मजबूरी को... कुछ जमाखोरों और कुछ लोगों ने राशन दुकानों मे कीमतें बढाकर लोगों को लूटना शुरू किया हुआ है... खैर... घबराओ मत... मोना... भाई को जरुरी अनाज सब्जी और कुछ रुपये दे दो... मोना ने एक थैला निकाला कुछ स्टोरेज कुछ फ्रिज मे से रसद समान देते हुए कहा- घबराओ मत भैया बुरा वक्त है जल्द ही गुजर जाएगा... हर काली रात की सुबह जरुर होती है...*
_काल्पनिक छठवां दृश्य..._
*वो समान लिए रोते हुए... दरवाजे से बाहर निकल गया... वही दोनों पति-पत्नी भीगी पलकों को छुपाते चुप-चाप वापस कमरे में बिस्तर पर आकर सो गए... दोस्तों जाने कितनी बार लिखते समय मे स्वयं निशब्द-सा हो जाता हूं... दोस्तों आपके दोस्त _दिनेश कुमार कीर_ की ऐसे वक्त मे एक अपील है सिर्फ और सिर्फ इंसानियत याद रखिए... ये बुरा वक्त भी जल्द ही गुजर जाएगा... आखिर इस काली रात को दूर करने... वो नयी सुबह कभी तो आएगी... वो नयी सुबह कभी तो आएगी...*
सभी से अपील की जाती है कि कोरोना महामारी की वजह से आपातकाल की स्थिति में गरीब व मजदूर की रसद सामग्री से मदद करे ......
1 Comments
सुपर दिनेश जी बहुत ही बढ़िया आप हमेशा अच्छा करो यही हमारी दुआ है आपके लिए
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